5000 पाठकों की संख्या पार होने पर मैं अपने पाठकों बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ

मैं अपनी विजीटरो बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूँ, जिन्होंने मुझे इतना प्यार दिया और मेरे द्वारा लिखी हुई लेखों को पढ़ा। मैं उन्हें लंबी उम्र की कामना करता हूँ कि ईश्वर उन्हें मुश्किलों मे मार्गदर्शन करें। मैं उन्हें सदा खुश रहने की प्रार्थना करता हूँ। किन्तु सुख और दुख ये सब तो प्राकृतिक के नियम हैं; अर्थात ये तो जीवन मे आते रहेंगे। यदि जीवन मे दुख न हो तो सुख का अनुभव ही न होता हैं। इस संसार ऐसे व्यक्तियों से भरे परे जिन्हें बहुत पैसे हैं पर वह सुखी नहीं हैं। वह ऐश्वर्य और शान से रह रहे हैं किन्तु शान्ति नहीं हैं। क्या आप जानते हैं कि उन्हें शान्ति क्यों नहीं हैं? उन्हें संतोष नहीं हैं इसलिए शान्ति नहीं। अर्थात सबकुछ से भरे होने के पश्चात भी दुखी हैं। वह दुखी इसलिए हैं कि कभी उन्हें दुख न हुआ हैं इसलिए उन्हें सुख का अनुभव नहीं होता हैं। यदि शान्ति चाहिए सुख का अनुभव चाहिए तो इसके लिए एकाग्रता की आवश्यकता हैं। और एकाग्रता के लिए योग करना होगा।


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