मंगलवार, 17 अक्तूबर 2017

बारात " baraat"

        यह सोचकर मुझे हँसी आती हैं कि मैं भी कितना मूर्ख था जो बारात जाने के लिए नंगे भी दौड़कर गाड़ियों के पीछे भागने लगता था।

       

          मेरे एक बचपन दोस्त था उसका शादी था तो सोचा कि शादी विवाह तो बार-बार नहीं होते हैं, फिर मौका मिलेंगे या नहीं। मैं घर गया स्नान किया और कपड़ों को ईस्त्री  किया। बारात जाना था क्योंकि बचपन का दोस्त था। मुझे थोड़ी भुख भी लगी थी पर मुझे बारात जाना था खाना भी न खा सका। मै कपड़े पहना और सबसे पहले गाड़ी में जा बैठा। मैं गाड़ियों को प्रस्थान करने का प्रतिक्षा कर रहा था। तीन घंटे से बैठा हूँ अभी तक गाड़ी न खुली है।




        जब सुर्यास्त हो रहा था तो गाड़ी प्रस्थान करने को तैयार हुआ। जैसे ही गाड़ी खुलने लगी  मेरे दोस्त के कुछ रिश्तेदार आएं उसके भैया को साथ लेकर। गाड़ी में जगह नहीं थी तो उसके भैया ने मुझे उतरने को बोला। मैं गाड़ी से उतर गया। मेरे हृदय को उससे काफी ठेस पहुँचा, मैंने उस दिन से बारात कभी न गया।


        जब सुर्यास्त हो रहा था तो गाड़ी प्रस्थान करने को तैयार हुआ। जैसे ही गाड़ी खुलने लगी  मेरे दोस्त के कुछ रिश्तेदार आएं उसके भैया को साथ लेकर। गाड़ी में जगह नहीं थी तो उसके भैया ने मुझे उतरने को बोला। मैं गाड़ी से उतर गया। मेरे हृदय को उससे काफी ठेस पहुँचा, मैंने उस दिन से बारात कभी न गया।



      मैं पहले कहीं घुमने न जाता था। सिर्फ मुझे बारात जाने का शौक था। क्योंकि नया नया गाड़ियों पर चढ़ नया नया गाँव देखने को मिलता। चलते हुए गाड़ियों से बाहर का दृश्य मन को आनंदित करता था। इसलिए मैं नया गाँव देखने बारात जाया करता था।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें