बुधवार, 1 जून 2016

बचपन के वे दिन

मैं आपलोगों को बता दूँ की यह किस जगह की तस्वीर हैं।हाँ, यह वहीं जगह  हैं जहाँ मेरा जन्म हुआ था ।अब यहाँ पर एक भी घर नहीं है।हाँ नदी के इस तरफ जरूर हैं।







मैं अपने बचपन के दिन के बारे मे बताने जा रहा हूँ।बचपन दिन हर व्यक्ति को याद आती हैं।और जब वह बूढ़े हो जाते हैं तो अपने जवानी के दिन याद करते हैं। लेकिन मैं आपलोगों को बता दूँ की बचपन के दिन जैसा खूबसूरत दिन कोई और दिन नहीं होता हैं।

       जब हम कभी तनाव मे होते हैं तो कहीं एकांत मे बैठकर सोचने लगते हैं । और जब अपने बचपन के दिन के बारे मे सोचते हैं तो ऐसा लगता है मुझे किसी प्रकार के तनाव नहीं और नहीं किसी प्रकार की दुख।उस दिन को याद करने मे जो शान्ति मिलती हैं जो किसी फिल्में या खेलों को देखने मे नहीं मिलता हैं। मुझे ऐसा लगता हैं बचपन का दिन नहीं यह तो स्वर्ग का दिन हैं।
क्योंकि बचपन मे जो सुख मिलती है।वह कभी नहीं मिलती हैं। लेकिन उस समय इस सुख की अनुभूति नहीं होते हैं, जितना अभी उस पल को याद कर मिलती है।
     
            सोचते हैं हम फिर से हो जाए लेकिन इस पर किसी का ज़ोर नहीं हैं, क्योंकि ये तो प्राकृतिक के नियम हैं और प्राकृतिक के नियम पर किसी का जोर नहीं चलता है। जिस तरह बंदूक से निकला गोली तीर से निकला कमान वापस नहीं होता उसी प्रकार बीते हुए बचपन के दिन और जवानी माँ का प्यार ये सबकुछ कभी नहीं मिलेगा।



     

           अब मैं अपने बचपन के बारे मे बतानगजा रहा हूँ:-

मैं  विनय कुमार कुमार राय


जाति :- यादव

माता :- बिरजी देवी

पिता :- रामनंदन राय

दादा :- रामधारी राय

रंग :- साँवला

कद :- ५'८"

मैं  आपलोगों को मेरे बचपन के दिन के बारे मे बताने जा रहा हूँ।

मेरा जन्म गंगा नदी के किनारे वसा गाँव रामनगर दियारा मे हुआ हैं, जो आज गंगा नदी के गोद मे
हैं। मैं बचपन मे बहुत गाना गाता था, मुझे बचपन से ही   गाना गाने का शौक था इसलिए मैं गाने गाया करता था और मुझे बचपन से घोड़े की सवारी करने का शौक था । इसलिए मैं लकड़ी की घोड़े की सवारी करता था। लेकिन मैं आपको एक बात बताना भूल गया कि मैं आज तक कभी घोड़े की सवारी नहीं किया हैं।मैं आपको एक बात बता दूँ की मेरे गाँव मेरे गाँव मे घोड़े और हाथी की कमी कभी न थी। लेकिन मैं  उस समय बच्चा था इसलिए मुझे किसी ने घोड़े की सवारी नहीं कराई। मैं घोड़े पर चढ़ने के लिए बहुत जिद करता लेकिन कोई मुझे घोड़े की  सवारी नहीं कराई। हाँ भैस की सवारी की हैं ।

क्योंकि भैस चराने जाता तो उसके पीठ पर बैठकर जाता और भैस चराता था।मै करीब पाँच वर्ष का था उस समय गंगा नदी के तेज कटाव के कारण हमारे समूचे गाँव गंगा के गोद मे चल गया। और हमारे परिवार और गाँव वाले वहाँ से एक छोटे से शहर बख्तियारपुर मे आकर बस गए और कुछ गाँव वाले अन्य गाँव मे बस गए गए ।

            मैं बचपन मे मिट्टी का खिलौने भी बनाता था और खिलौने मे " गाय, बैल,घोड़ा, हाथी, ट्रैक्टर, ट्रक, बैल गाड़ी" बनाता था। हमारे घर के पास नरकट के पौधे था जिससे हमारे भैया बाँसुरी भी बनाते थे।

           मैं बचपन मे हमेशा नंगे ही रहता था। करीब आठ-से-दस वर्ष के उम्र तक नंगे ही रहते था। जब मैं गंगा नदी मे स्नान करने के लिए जाता तो गंगा नदी के रेत पर लोट-पोट भी होते थे। और स्नान करता और फिर लोटता और फिर स्नान करता था।नदी के किनारे  भीगी रेत से मंदिर बनाते और उस पर जल चढाते थे।
और फिर मस्ती मे घर चले आते थे।
     
             मैं बचपन मे हमेशा माँ के साथ ही रहा हूँ । और मुझे माँ के आँचल के छाँव छोर कहीं नींद भी नहीं आती थी। और आती कैसे माँ जैसी ममता किसी और की हृदय मे कहां क्योंकि की गलती करने पर डंडा भी मारती और कहती इतने तंग मुझे क्यों करते हो क्यों किसी को मारते हो जो मुझे, तुझे पीटने पर मजबुर हो हो जाती हूँ। और साथ मे गले से लगाकर वह भी रोने लगती थी। तो बताओ किसी और के गोद मे प्यार और शान्ति कहां से मिलती।
 
     एक बार की बात है मेरे भैया मक्खन बेच रहे थे और मैं मक्खन खा रहा था। भैया मुझे कुछ लाने को कहा और मैं नहीं गया इससे नाराज होकर मेरे भाई ने मेरे गाल पर चाटा  लगा दी और गालीयाँ भी देने लगे।
मैं रो भी रहा था और मक्खन भी खा रहा था।एक लड़का का नाम विकास है जो वहां खड़ा था और  वह मुझे वोला रो रहा हैं और खा रहा हैं तो मुझे गुस्सा आया और मैं उसके मुँह पर मक्खन फेंक दिया तो वह मक्खन चाटने लगा। वहाँ पर ढेर सारे बच्चे थे। सभी बच्चे उसे छेड़ लगा और कहा "मक्खन चाट गया मक्खन चाट गया..........................." । छेड़छाड़ से परेशान होकर उसने गालीयाँ बकने लगा और पत्थर भी मारने लगा।

      एक बार उसी लड़के साथ मेरी कुश्ती हुईं तो मैंने उसे चित्त कर दिया तो उसने मेरी पेट मे दाँत काट लिया ।
 
उसके बाद मैने उससे कभी कुश्ती नहीं की









    मुझे बचपन के दिन बहुत याद आता हैं सोचता हूँ ।
काश मैं बच्चा ही रहता तो कितना अच्छा होता ।
लेकिन ये तो प्राकृतिक के नियम हैं इस पर किसी का बस नहीं।जो जन्म लिया हैं उसकी मृत्यु होगी
जो बच्चे वह बड़े होंगे ।

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